भाव पदार्थ
भाव पदार्थ
१. द्रव्य – यह वह नित्य भाव पदार्थ है , जो क्रिया और गुण का आधार और कर्म तथा गुण का समवायिकरण होता है ।
२. गुण – यह समवाय सम्बन्ध से द्रव्य में रहने वाला वह नित्य पदार्थ है , जो स्वयं निष्क्रिय और चेष्टाराहित होता है , जैसे – लघु – गुरु , शीत – उष्ण आदि ।
३. कर्म – यह वह पदार्थ है जो एक ही साथं संयोग और विभाग में कारण हो एवं द्रव्य के आश्रित हो । कर्तव्य की क्रिया को कर्म कहते हैं । यह कर्म संयोग और विभाग में किसी अन्य कारण की अपेक्षा नहीं करता है । प्रयत्नादि के द्वारा की गयी चेष्टा को ‘ कर्म ‘ कहते हैं , जैसे – गमन , उत्क्षेपण , प्रसारण आदि ।
४. सामान्य – यह वह पदार्थ है जो सदैव सभी भावों की वृद्धि करने वाला होता है , जैसे – गोत्व , मनुष्यत्व आदि ।
यह तीन प्रकार से कार्य करता है –
• द्रव्य सामान्य- १. मांस सेवन से मन की वृद्धि ,
• गुण सामान्य- २. मधुर रस सेवन से कफ की वृद्धि और
• कर्म सामान्य -३.दौड़ने से वायु की वृद्धि होती है ।
५. विशेष -यह ह्रास का कारण होता है । जैसे – मांस की वृद्धि होने पर वातवर्द्धक अस्थि का सेवन करना ।
-जो अलग करने वाली बुद्धि है वह विशेष है ।
-विशेष तुल्य ( समान ) के विपरीत अर्थ को बताता है ।
यह तीन प्रकार से कार्य करता है -१. द्रव्य विशेष- बाजरा या जोन्हरी सेवन से स्थूलता नष्ट होना ।
२. गुण विशेष- घृत या तेल के सेवन से स्निग्धता गुण के वात का क्षय होना और
३.कर्म विशेष- कफ की वृद्धि होने पर दौड़ना ।
६. समवाय -द्रव्यों के साथ गुणों का अपृथग्भाव ( अलग न होना ) ही समवाय सम्बन्ध है । यह नित्य होता है । जहाँ द्रव्य होता है वहां गुण निश्चित ही रहता है , जैसे – अग्नि में उष्णता , जल में शीतलता आदि ।
अभाव पदार्थ – किसी वस्तु की अनुपस्थिति ही उसका अभाव है ।
यह दो प्रकार का है -१ . संसर्गाभाव और २. अन्योन्याभाव ।
१. संसर्गाभाव – यह तीन प्रकार का है -१ . प्राग्भाव , २. प्रध्वंसाभाव और ३. अत्यन्ताभाव ।
( १ ) प्राग्भाव – किसी वस्तु की उत्पत्ति से पहले उसका न होना , जैसे – घड़े के निर्माण के पहले उसका न होना ।
( २ ) प्रध्वंसाभाव – वस्तु के नष्ट होने पर उसका अभाव होना , जैसे – धड़े के नष्ट होने के बाद उसका अभाव होना ।
( ३ ) अत्यन्ताभाव – किसी वस्तु का सर्वकालिक ( भूत , वर्तमान और भविष्य सभी काल में ) न होना , जैसे – अग्नि में शीतलता का अभाव ।
२. अन्योन्याभाव – दो वस्तुओं में पारस्परिक भिन्नता का होना जैसे — मनुष्य पशु नहीं है ।
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